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ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-जानाँ पे तबीअत मिरी लहराई है
साँप के मुँह में मुझे मेरी क़ज़ा लाई है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
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ग़ज़ल
अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी
तो ये समझो कि बुनियाद-ए-ख़राबात-ए-मुग़ाँ रख दी
साइल देहलवी
ग़ज़ल
कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख
दीदा-ए-हक़-बीं से रंग-ए-आलम-ए-तस्वीर देख
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
तन्हाई ने वो रक़्स-ओ-तमाशा किया कि वाह
ऐसा जहाँ में इश्क़ ने रुस्वा किया कि वाह