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ग़ज़ल
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
किस क़दर बे-रूइयाँ देखीं प मुँह मोड़ा नहीं
आबरू शाह मुबारक
नज़्म
ईस्ट इंडिया कंपनी के फ़रज़ंदों से ख़िताब
किस ज़बाँ से कह रहे हो आज तुम सौदागरो
दहर में इंसानियत के नाम को ऊँचा करो
जोश मलीहाबादी
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ग़ज़ल
सुब्ह-ए-तरब को कौन पुकारे हम को है ग़म की शाम बहुत
पहरों-पहरों जब दिल तड़पे मिलता है आराम बहुत
पयाम फ़तेहपुरी
हास्य शायरी
हर इक लुटेरे को दूसरे का ख़याल होगा ये तय हुआ था
बराबर उस के बनेंगे हिस्से जो माल होगा ये तय हुआ था
बद्र मुनीर
ग़ज़ल
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
नज़्म
बरसात की बहारें
हैं इस हवा में क्या क्या बरसात की बहारें
सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें