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ग़ज़ल
अब वो फिरते हैं इसी शहर में तन्हा लिए दिल को
इक ज़माने में मिज़ाज उन का सर-ए-अर्श-ए-बरीं था
हबीब जालिब
ग़ज़ल
चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली को
ये जानता है कि इस दिखावे से दिल-जलों में शुमार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं
हम सा वहशी कोई जंगल के दरिंदों में नहीं
साहिर लुधियानवी
शेर
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है