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ग़ज़ल
वही सुब्ह का धुंधलका वही मंज़िलें वही शब
कोई क्या समझ सकेगा ग़म-ए-ज़िंदगी का मतलब
होश बिलग्रामी
ग़ज़ल
मुझे याद हैं वो दिन जो तिरी बज़्म में गुज़ारे
वो झुकी झुकी निगाहें वो दबे दबे इशारे