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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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फ़िक्र-ए-हस्ती है न एहसास-ए-अजल

होश बिलग्रामी

फ़िक्र-ए-हस्ती है न एहसास-ए-अजल

होश बिलग्रामी

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    फ़िक्र-ए-हस्ती है एहसास-ए-अजल

    ये ख़िरद है या दिमाग़ों का ख़लल

    ज़िंदगी बे-कश्मकश मिलती नहीं

    आँधियों से खेल तूफ़ानों में चल

    छा रही हैं इबरतें ही इबरतें

    हल्क़ा-ए-औहाम-ए-हस्ती से निकल

    ये मोहब्बत की रह-ए-दुश्वार है

    डगमगाते हैं क़दम नादाँ सँभल

    ग़म से होती है हक़ीक़त आश्कार

    मुज़्तरिब मौजों में खिलता है कँवल

    वक़्त की आवाज़ सुनना चाहिए

    वक़्त का फ़रमान होता है अटल

    ग़म अगर क़िस्मत में हो लिक्खा हुआ

    'होश' काम आते नहीं सई-ओ-अमल

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