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ग़ज़ल
सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल
तू ने अपने तरकश में जो रक्खा है वो तीर निकाल
शाहिद कमाल
ग़ज़ल
कोई 'ग़ालिब' जानता है कोई 'ख़ाक़ानी' मुझे
हाए दुनिया कैसे पहचानी जो पहचानी मुझे
ताहिर सऊद किरतपूरी
समस्त