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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
सरसय्यद के मज़ार पर
चराग़-ए-इल्म रौशन है हक़ीक़त की हवाओं पर
हुकूमत कर रहा है एक गोशे से फ़ज़ाओं पर
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
मर्सिया
अर्श के नूरी ज़मीं के फ़र्श पर आने को हैं
और इक ख़ाकी को सैर-ए-ख़ुल्द दिखलाने को हैं