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ग़ज़ल
पहरों चुप रहते हैं हम और अगर बोलते हैं
वही फिर फिर के उलटती हैं तुम्हारी बातें
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
मगर उस को फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना आता है
उलटती हैं सफ़ें गर्दिश में जब पैमाना आता है
हैदर अली आतिश
नज़्म
मुसलमान और हिन्दोस्तान
तारीख़ ब-हर दौर उलटती है वरक़ और
मज़हब में है लेकिन वतनियत का सबक़ और