मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल 12
अशआर 12
किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता
यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता
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तकल्लुफ़-बर-तरफ़ तुम कैसे मा'बूद-ए-मोहब्बत हो
कि इक दीवाना तुम से होश में लाया नहीं जाता
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तुम्हारे नाम से मंसूब हो जाते हैं दीवाने
ये अपने होश में होते तो पहचाने कहाँ जाते
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मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
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मोहब्बत बद-गुमाँ हो जाए तो ज़िंदा नहीं रहती
असर दिल पर तुम्हारी बे-रुख़ी से कुछ नहीं होता
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