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हास्य शायरी
'ग़ालिब' ने की ये अर्ज़ ख़ुदावंद-ए-ज़ुल-जलाल
जन्नत से कुछ दिनों के लिए कर मुझे बहाल
साग़र ख़य्यामी
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नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
ज़र्रा ज़र्रा दहर का ज़िंदानी-ए-तक़दीर है
पर्दा-ए-मजबूरी ओ बेचारगी तदबीर है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
ऐ शम-ए-'जोश' ओ मशअ'ल-ए-ऐवान-ए-आरज़ू
ऐ मेहर-ए-नाज़ ओ माह-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हिण्डोला
दयार-ए-हिन्द था गहवारा याद है हमदम
बहुत ज़माना हुआ किस के किस के बचपन का