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शेर
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
ये लोहे के चने वल्लाह आशिक़ ही चबाते हैं
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
याद करते हैं तुझे दैर-ओ-हरम में शब-ओ-रोज़
अहल-ए-तस्बीह जुदा साहिब-ए-ज़ुन्नार जुदा
मीर मोहम्मदी बेदार
शेर
छोटी ही उम्र में अल्लाह वज़ीफ़ा इतना
अभी क्या सिन है जो पढ़ते हो बला की तस्बीह
लाला माधव राम जौहर
शेर
करें ताक़त गँवा कर आबिदाँ मय-ख़ाना कूँ सज्दा
क्या ज़ुन्नार में तस्बीह देखन रू-ए-ज़ेबारा
क़ुली क़ुतुब शाह
शेर
दिल में ख़ाक उड़ती है कहने को बड़े हैं ज़ाहिद
मक्र का विर्द है पढ़ते हैं रिया की तस्बीह
लाला माधव राम जौहर
शेर
छोड़ कर तस्बीह ली ज़ुन्नार उस बुत के लिए
थे तो अहल-ए-दीं पर इस दिल ने बरहमन कर दिया
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
गले में अपने पहना है जो तू ने ऐ बुत-ए-काफ़िर
मिरी तस्बीह को है रश्क ज़ुन्नार-ए-बरहमन पर
मीर कल्लू अर्श
शेर
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
तकल्लुफ़ बरतरफ़ आशिक़ हैं अपने यार के बंदे