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शेर
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
सब अयाँ है क्या तजल्ली को यहाँ तकरार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
सुल्ह-ए-कुल में मिरी गुज़रे है मोहब्बत के बीच
न तो तकरार है काफ़िर से न दीं-दार से बहस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जो है काबा वो ही बुत-ख़ाना है शैख़ ओ बरहमन
इस की नाहक़ करते हो तकरार दोनों एक हैं