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शेर
कभी ख़ौफ़ था तिरे हिज्र का कभी आरज़ू के ज़वाल का
रहा हिज्र-ओ-वस्ल के दरमियाँ तुझे खो सका न मैं पा सका
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कभी ख़ौफ़ था तिरे हिज्र का कभी आरज़ू के ज़वाल का
रहा हिज्र-ओ-वस्ल के दरमियाँ तुझे खो सका न मैं पा सका