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शेर
रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गए
वाह-री ग़फ़लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
तुम्हें है नश्शा जवानी का हम में ग़फ़लत-ए-इश्क़
न इख़्तियार में तुम हो न इख़्तियार में हम
जावेद लख़नवी
शेर
शबाब ढलते ही आई पीरी मआ'ल पर अब नज़र हुई है
बड़ी ही ग़फ़लत में शब गुज़ारी कहाँ पहुँच कर सहर हुई है
दिल शाहजहाँपुरी
शेर
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात
सुब्ह जो चौंका हुआ मसरूफ़ इसी सामान में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ये भी न पूछा तुम ने 'अंजुम' जीता है या मरता है
वाह-जी-वा आशिक़ से कोई ऐसी ग़फ़लत करता है
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
तोहमत-ए-जुर्म-ओ-ख़ता हिर्स-ओ-हवा ग़फ़लत-ए-दिल
हम ने बाज़ार से हस्ती के लिया क्या क्या कुछ