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शेर
किसी लम्हे तो ख़ुद से ला-तअल्लुक़ भी रहो लोगो
मसाइल कम नहीं फिर ज़िंदगी भर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
शेर
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
तुझ को देखा न तिरे नाज़-ओ-अदा को देखा
तेरी हर तर्ज़ में इक शान-ए-ख़ुदा को देखा
मिर्ज़ा मायल देहलवी
शेर
उसी ख़ातिर हटा ली है मसाइल से तवज्जोह
उन्हें थोड़ा सा मैं गम्भीर करना चाहता हूँ