आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "مظہر"
शेर के संबंधित परिणाम "مظہر"
शेर
ये हसरत रह गई क्या क्या मज़े से ज़िंदगी करते
अगर होता चमन अपना गुल अपना बाग़बाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
रुस्वा अगर न करना था आलम में यूँ मुझे
ऐसी निगाह-ए-नाज़ से देखा था क्यूँ मुझे
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
जो तू ने की सो दुश्मन भी नहीं दुश्मन से करता है
ग़लत था जानते थे तुझ को जो हम मेहरबाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
इतनी फ़ुर्सत दे कि रुख़्सत हो लें ऐ सय्याद हम
मुद्दतों इस बाग़ के साये में थे आज़ाद हम