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शेर
दिल्ली हुई है वीराँ सूने खंडर पड़े हैं
वीरान हैं मोहल्ले सुनसान घर पड़े हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अंदर से मैं टूटा-फूटा एक खंडर वीराना था
ज़ाहिर जो ता'मीर न होती तो मैं यारो क्या करता
अफ़ज़ल हज़ारवी
शेर
खंडर में माह-ए-कामिल का सँवरना इस को कहते हैं
तुम उतरे दिल में जब दिल को बयाबाँ कर दिया हम ने
इज्तिबा रिज़वी
शेर
हमारी वहशत किसी पुराने खंडर के आसेब की अमानत
हमारी ग़ज़लें हमारी देवी की एक तिरछी नज़र का सदक़ा