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शेर
तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है
हफ़ीज़ बनारसी
शेर
रखते हैं जो अल्लाह की क़ुदरत पे भरोसा
दुनिया में किसी की वो ख़ुशामद नहीं करते
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
शेर
क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का
क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिन की आँखें ठीक हैं उन को तख़य्युल चाहिए
शुजा ख़ावर
शेर
अकबर इलाहाबादी
शेर
हमेशा शेफ़्ता रखते हैं अपने हुस्न-ए-क़ुदरत का
ख़ुद उस की रूह हो जाते हैं जिस का तन बनाते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
शेर
ख़ुदा देवे अगर क़ुदरत मुझे तो ज़िद है ज़ाहिद की
जहाँ तक मस्जिदें हैं मैं बनाऊँ तोड़ बुत-ख़ाना
ताबाँ अब्दुल हई
शेर
हुस्न-ए-आरास्ता क़ुदरत का अतिय्या है मगर
क्या मिरा इशक़-ए-जिगर-सोज़ ख़ुदा-दाद नहीं