aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "गुलाब"
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिएपंखुड़ी इक गुलाब की सी है
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँवो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने सेचमन में आ के भी काँटा गुलाब हो न सका
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाबकि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँगुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं
सुनो कि अब हम गुलाब देंगे गुलाब लेंगेमोहब्बतों में कोई ख़सारा नहीं चलेगा
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैंये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे
आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्मकब तक असीर ख़ुशबू रहेगी गुलाब में
कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखेंछतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता
जो दे रहे हो ज़मीं को वही ज़मीं देगीबबूल बोए तो कैसे गुलाब निकलेगा
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या कियाउस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
उसे किसी से मोहब्बत न थी मगर उस नेगुलाब तोड़ के दुनिया को शक में डाल दिया
एक मैं ने ही उगाए नहीं ख़्वाबों के गुलाबतू भी इस जुर्म में शामिल है मिरा साथ न छोड़
वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंदमैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे
तिरे बदन की महक को गुलाब से तश्बीहकि जैसे कोई दिखाए चराग़ सूरज को
किसी के लम्स की तासीर है कि बरसों बा'दमिरी किताबों में अब भी गुलाब जागते हैं
'अनवर' मिरी नज़र को ये किस की नज़र लगीगोभी का फूल मुझ को लगे है गुलाब का
अब इत्र भी मलो तो तकल्लुफ़ की बू कहाँवो दिन हवा हुए जो पसीना गुलाब था
दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझेउस ने भेजा है इक गुलाब मुझे
गुल-दान में गुलाब की कलियाँ महक उठींकुर्सी ने उस को देख के आग़ोश वा किया
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