aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "जनाज़े"
जो रात दिन मिरे मरने की कर रहे थे दुआवो रो रहे हैं जनाज़े में हिचकियाँ ले कर
मिरे ख़ुदा मुझे थोड़ी सी ज़िंदगी दे देउदास मेरे जनाज़े से जा रहा है कोई
रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश परक्या जनाज़े पर मेरे ख़त का जवाब आने को है
कौन सा दर्द उतर आया है तहरीरों मेंसारे अल्फ़ाज़ जनाज़े की तरह लगते हैं
जनाज़े वालो न चुपके क़दम बढ़ाए चलोउसी का कूचे है टुक करते हाए हाए चलो
जिस तरह आप ने बीमार से रुख़्सत ली हैसाफ़ लगता है जनाज़े में नहीं आएँगे
वक़्त की लाश पे रोने को जिगर है किस काकिस जनाज़े को लिए अहल-ए-नज़र आते हैं
चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकलेआशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
कुर्सी है तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं हैकुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरियान कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता
सुब्ह ले जाते हैं हम अपना जनाज़ा घर सेशाम को फिर उसे काँधों पे उठा लाते हैं
मिरी नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ी है ग़ैरों नेमरे थे जिन के लिए वो रहे वज़ू करते
जनाब-ए-'कैफ़' ये दिल्ली है 'मीर' ओ 'ग़ालिब' कीयहाँ किसी की तरफ़-दारियाँ नहीं चलतीं
कहा मैं ने मरता हूँ तुम पर तो बोलेनिकलते न देखा जनाज़ा किसी का
सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐबयानी जनाब-ए-शैख़ की दाढ़ी दराज़ है
जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोलेगली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो
शब को मिरा जनाज़ा जाएगा यूँ निकल कररह जाएँगे सहर को दुश्मन भी हाथ मल कर
कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने सेजनाब-ए-शैख़ को मैं बरहमन कह दूँ तो क्या होगा
वो जिस को पढ़ता नहीं कोई बोलते सब हैंजनाब-ए-'मीर' भी कैसी ज़बान छोड़ गए
किस को समझाने लगे आप जनाब-ए-नासेहमैं तो नादाँ हूँ मगर आप तो नादान नहीं
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