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शेर
मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया
मैं जब आ सका न शुमार में मुझे बे-शुमार बना दिया
इक़बाल कौसर
शेर
हल्क़ा-ए-दिल से न निकलो कि सर-ए-कूचा-ए-ख़ाक
ऐश जितने हैं इसी कुंज-ए-कम-आसार में हैं
अरशद अब्दुल हमीद
शेर
जौन एलिया
शेर
सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने
उधर तक़दीर गर्दिश में इधर गर्दिश में जाम आया
फ़िगार उन्नावी
शेर
सर-ए-राह मिल के बिछड़ गए था बस एक पल का वो हादसा
मिरे सेहन-ए-दिल में मुक़ीम है वही एक लम्हा अज़ाब का
अंजुम इरफ़ानी
शेर
दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए
न तो ग़म रहा न ख़ुशी रही न जुनूँ रहा न परी रही