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शेर
वामिक़ जौनपुरी
शेर
ऐ ज़ब्त एक थोड़ी सी बाक़ी थी आबरू
रोने ने रात-दिन के मिटा दी रही-सही
मीर ताहिर अली ताहिर फ़र्रुख़ाबादी
शेर
बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर
मुझे अंदर से फूंके दे रही है रौशनी मेरी
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में