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शेर
फ़िक्र-ए-फ़र्दा ग़म-ए-इमरोज़ ग़म-ए-मौत-ओ-हयात
आदमी क्या हुआ मजमूआ'-ए-आलाम हुआ
मेह्र निज़ामी मेरठी
शेर
सज़ा देते हैं 'वासिफ़' सब को वो जुर्म-ए-मोहब्बत पर
नहीं मेरे लिए कोई सज़ा ये है सज़ा मेरी
वासिफ़ बनारसी
शेर
बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
बढ़े है उम्र ज्यूँ-ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है
सदा अम्बालवी
शेर
बोसा-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त दे के गुनहगार किया
तू ने काँटों में मुझे ऐ गुल-ए-रअना खींचा
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
मुसाफ़िराना रहा इस सरा-ए-हस्ती में
चला फिरा मैं ज़माने में रहगुज़र की तरह
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए
वहीं से वो पुकार उठेगा जो ज़र्रा जहाँ होगा