aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "हराम"
इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम हैअंगूर की शराब का पीना हराम है
जो और कुछ हो तिरी दीद के सिवा मंज़ूरतो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए
साक़ी हमें क़सम है तिरी चश्म-ए-मस्त कीतुझ बिन जो ख़्वाब में भी पिएँ मय हराम हो
तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करतेज़रा सी बात पे जीना हराम क्या करते
बे-आरज़ू भी ख़ुश हैं ज़माने में बाज़ लोगयाँ आरज़ू के साथ भी जीना हराम है
पूछ न वस्ल का हिसाब हाल है अब बहुत ख़राबरिश्ता-ए-जिस्म-ओ-जाँ के बीच जिस्म हराम हो गया
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू सेहराम-ज़ादा था अच्छा हुआ हलाल हुआ
यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ेंतिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है
मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी सेजिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं
इश्क़ में शिकवा कुफ़्र है और हर इल्तिजा हरामतोड़ दे कासा-ए-मुराद इश्क़ गदागरी नहीं
नहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरेयही है मौत कि जीना हराम हो जाए
गिरह से कुछ नहीं जाता है पी भी ले ज़ाहिदमिले जो मुफ़्त तो क़ाज़ी को भी हराम नहीं
हर नफ़स इक शराब का हो घूँटज़िंदगानी हराम है वर्ना
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूरपीने ही पर जब आए हराम ओ हलाल क्या
नज़र मिला के कहा मुझ से मेरे साक़ी नेहराम कहते हैं जिस को ये वो शराब नहीं
जनाब-ए-शैख़ को सूझे न फिर हराम ओ हलालअभी पिएँ जो मिले मुफ़्त की शराब कहीं
मेरी नींदें हराम क्या होंगीघर में रिज़्क़-ए-हलाल आता है
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एककुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
वाइ'ज़ ये मय-कदा है न मस्जिद कि इस जगहज़िक्र-ए-हलाल पर भी है फ़तवा हराम का
ख़ुद पर हराम समझा समर के हुसूल कोजब तक शजर को छाँव के क़ाबिल नहीं किया
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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