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शेर
आज भी है वही मक़ाम आज भी लब पे उन का नाम
मंज़िल-ए-बे-शुमार-गाम अपने सफ़र को क्या करूँ
सालिक लखनवी
शेर
ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैं
जब उन की यख़-बस्तगी परखना तमाज़तें भी शुमार करना
नोशी गिलानी
शेर
ख़्वाब और नींदों का ख़त्म हो गया रिश्ता
मुद्दतों से आँखों में रत-जगों का मौसम है