aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ahmad mushtaq"
पता अब तक नहीं बदला हमारावही घर है वही क़िस्सा हमारा
इश्क़ में कौन बता सकता हैकिस ने किस से सच बोला है
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँउसे ढूँडें कि उस को भूल जाएँ
भूल गई वो शक्ल भी आख़िरकब तक याद कोई रहता है
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का हैये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बानाऔर फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा हैइसे देखें कि इस में डूब जाएँ
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी सेलेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
तू अगर पास नहीं है कहीं मौजूद तो हैतेरे होने से बड़े काम हमारे निकले
ख़ैर बदनाम तो पहले भी बहुत थे लेकिनतुझ से मिलना था कि पर लग गए रुस्वाई को
नए दीवानों को देखें तो ख़ुशी होती हैहम भी ऐसे ही थे जब आए थे वीराने में
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों मेंतुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़'हमारे साथ है साया हमारा
अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लीलवो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थीमैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता हैवो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है
चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकलेमुझ से अच्छे तो शब-ए-ग़म के मुक़द्दर निकले
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोईक्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पातीधूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गएइश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है
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