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शेर
दारुश्शफ़ा-ए-इश्क़ में ले जा के हम को इश्क़
बोला कि चंद रोज़ ये बीमारियाँ रहें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
रख लिया था मैं ने रोज़ा जाँ तुम्हारे नाम का
तुम को देखा ख़्वाब में और मेरी सहरी हो गई
यशवर्धन मिश्रा
शेर
आज की शब ख़्वाब में बातें हुई हैं जिन से मेरी
या-ख़ुदा इक रोज़ हो जाए मुझे दीदार उन का
यशवर्धन मिश्रा
शेर
हरी चंद अख़्तर
शेर
मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'
ख़ुदा जाने किधर का चाँद आज ऐ माह-रू निकला