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शेर
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
दर्द-ए-सर में है किसे संदल लगाने का दिमाग़
उस का घिसना और लगाना दर्द-ए-सर ये भी तो है
मारूफ़ देहलवी
शेर
फ़र्क़ जो कुछ है वो मुतरिब में है और साज़ में है
वर्ना नग़्मा वही हर पर्दा-ए-आवाज़ में है