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शेर
कुछ ग़ज़लें उन ज़ुल्फ़ों पर हैं कुछ ग़ज़लें उन आँखों पर
जाने वाले दोस्त की अब इक यही निशानी बाक़ी है
कुमार पाशी
शेर
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा
दुष्यंत कुमार
शेर
मैं तन्हाई को अपना हम-सफ़र क्या मान बैठा
मुझे लगता है मेरे साथ दुनिया चल रही है