aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mahfuuz"
चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखनाबड़ी दूर तक रात ही रात होगी
सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़'तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं
उस से मिलना और बिछड़ना देर तक फिर सोचनाकितनी दुश्वारी के साथ आए थे आसानी में हम
क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वोपेड़ पर महफ़ूज़ उन के घोंसले रख छोड़ना
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती हैकभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ
जो न करना हो वही काम तुम्हारे लिए हैमेरे हिस्से का भी आराम तुम्हारे लिए है
साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैंकुछ पुराने से कैलन्डर ज़ेहन की दीवार पर
बिछड़ के ख़ाक हुए हम तो क्या ज़रा देखोग़ुबार जा के उसी कारवाँ से मिलता है
जो एक लफ़्ज़ की ख़ुशबू न रख सका महफ़ूज़मैं उस के हाथ में पूरी किताब क्या देता
इस क़दर महफ़ूज़ रहता है कि वोराम का अवतार लगता है मुझे
कहाँ किसी को थी फ़ुर्सत फ़ुज़ूल बातों कीतमाम रात वहाँ ज़िक्र बस तुम्हारा था
जला है शहर तो क्या कुछ न कुछ तो है महफ़ूज़कहीं ग़ुबार कहीं रौशनी सलामत है
मिरे होने ने मुझ को मार डालानहीं था तो बहुत महफ़ूज़ था मैं
यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगरमहफ़ूज़ एक सादा वरक़ देर तक रहा
है जिस्म सख़्त मगर दिल बहुत ही नाज़ुक हैकि जैसे आईना महफ़ूज़ इक चट्टान में है
नहीं आसमाँ तिरी चाल में नहीं आऊँगामैं पलट के अब किसी हाल में नहीं आऊँगा
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे इंतिशार-ए-रहनुमाई सेइसी मंज़िल पे आ के आदमी दीवाना होता है
कट गया जिस्म मगर साए तो महफ़ूज़ रहेमेरा शीराज़ा बिखर कर भी मिसाली निकला
यहीं गुम हुआ था कई बार मैंये रस्ता है सब मेरा देखा हुआ
हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अबकोई इम्काँ ही नहीं लौट के घर जाने का
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