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शेर
रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़
ख़्वाब ज़िंदा हैं सो आँखों में जलाते हैं चराग़
असलम महमूद
शेर
गुज़रते जा रहे हैं क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक जा
ग़ुबार-ए-राह तेरे साथ चलना चाहता हूँ मैं
असलम महमूद
शेर
है आशिक़ ओ माशूक़ में ये फ़र्क़ कि महबूब
तस्वीर-ए-तफ़र्रुज है वो पुतला है अलम का