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शेर
तेरे घर आएँ तो ईमान को किस पर छोड़ें
हम तो काबे ही में ऐ दुश्मन-ए-दीं अच्छे हैं
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
है दिल की राह सीधी व का'बे की राह कज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
रास्ते में मिल गए तो पूछ लेते हैं मिज़ाज
इस से बढ़ कर और क्या उन की इनायत चाहिए