aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "muKHlis"
सुब्ह तक था वहीं ये मुख़्लिस भीआप रखते थे शब जहाँ तशरीफ़
मैं ने माना कि बहुत आप हसीं हैं लेकिनआप का दिल भी हसीं हो ये ज़रूरी तो नहीं
फूल पर गुलशन के गोया दाना-ए-शबनम नहींआशिक़ों के हाल पर आँखें फिराती है बहार
कई रंग बदलता है भरोसा नहीं उस काफ़िलहाल वो मुख़्लिस है मगर ज़ेहन में रखना
मुख़लिस-ओ-हमदर्द बन कर जो करे है रहज़नीउस रफ़ीक़-ए-राह की भी है रिफ़ाक़त ज़लज़ला
क़ुबूल उन की दुआएँ ज़रूर होती हैंरगों में अपनी लहू जो हलाल रखते हैं
मेरे दिल में मिरी आँखों में नज़र में रहिएकम से कम आप किसी एक तो घर में रहिए
धूम आने की ये किस की गुलज़ार में पड़ी हैहाथ अरगजी का पियाला नर्गिस लिए खड़ी है
रात में तीर अंधे चलाने लगेऔर निशाने पे उन के निशाने लगे
डिग्रियाँ-याफ़ता हज़ारों हैंहैं हक़ीक़त में पास गिनती के
चश्म-पोशी करें मुख़्लिस हैं वफ़ा में वो अगरक्यों मिरे अच्छे-बुरे पर वो नज़र रखते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस मेंहर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँदिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का
कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गएख़ाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए
मुफ़्लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरतअब खुल के मज़ारों पे ये एलान किया जाए
ग़म की दुनिया रहे आबाद 'शकील'मुफ़लिसी में कोई जागीर तो है
मुफ़लिसी सब बहार खोती हैमर्द का ए'तिबार खोती है
खिलौनों के लिए बच्चे अभी तक जागते होंगेतुझे ऐ मुफ़्लिसी कोई बहाना ढूँड लेना है
इसी लिए तो है ज़िंदाँ को जुस्तुजू मेरीकि मुफ़लिसी को सिखाई है सर-कशी मैं ने
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्यामुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं
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