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शेर
गुफ़्तुगू के ख़त्म हो जाने पर आया ये ख़याल
जो ज़बाँ तक आ नहीं पाया वही तो दिल में था
अली जवाद ज़ैदी
शेर
पी तो लूँ आँखों में उमडे हुए आँसू लेकिन
दिल पे क़ाबू भी तो हो ज़ब्त का यारा भी तो हो
अली जवाद ज़ैदी
शेर
ग़ैर पूछें भी तो हम क्या अपना अफ़्साना कहें
अब तो हम वो हैं जिसे अपने भी बेगाना कहें
अली जवाद ज़ैदी
शेर
अब दर्द में वो कैफ़ियत-ए-दर्द नहीं है
आया हूँ जो उस बज़्म-ए-गुल-अफ़्शाँ से गुज़र के