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शेर
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
ऐ सर्व-ए-गुल-बदन तू ज़रा टुक चमन में आ
ज्यूँ गुल शगुफ़्ता हो के मिरी अंजुमन में आ
अबुल हसन ताना शाह
शेर
शगुफ़्ता बाग़-ए-सुख़न है हमीं से ऐ 'साबिर'
जहाँ में मिस्ल-ए-नसीम-ए-बहार हम भी हैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
शेर
मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
अभी देने लगे मिरी तरह तुम को दुआ करवट
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
क्यूँ न दिल से दूँ दुआएँ अपने ग़ैन ओ मीम को
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
वो बे-दहन नज़र आया में बे-ज़बाँ ठहरा
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
ये दलील-ए-ख़ुश-दिली है मिरे वास्ते नहीं है
वो दहन कि है शगुफ़्ता वो जबीं कि है कुशादा
मोहम्मद दीन तासीर
शेर
रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं
शम-ए-हरम चराग़-ए-दैर क़श्क़ा-ए-बरहमन हूँ मैं
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
बीमार को है मर्दुम-ए-बीमार से ग़रज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मिरा पा-ए-नज़र पड़ता है ज़ंजीर-ए-गुलिस्ताँ पर