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शेर
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे
तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
जब भी मैं ने खोल कर देखी है यादों की किताब
यूँही सफ़्हों पर तड़पते मिल गए कुछ वाक़िआ'त
मरयम ग़ज़ाला
शेर
हिज्र में उस बुत-ए-काफ़िर के तड़पते हैं पड़े
अहल-ए-ज़ुन्नार कहीं साहब-ए-इस्लाम कहीं
ताबाँ अब्दुल हई
शेर
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में