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शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
शेर
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
अब्दुल हमीद अदम
शेर
एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम
आख़िर इतना फ़र्क़ क्यूँ तक़्सीम-ए-आब-ओ-गिल में है
आरज़ू लखनवी
शेर
सर-ए-महफ़िल वो फिर से आ गए हैं आज बे-पर्दा
न जाने कौन सी शय फिर मिरी तक़्सीम होनी है
एहतमाम सादिक़
शेर
तुम अपनी आँखों की लाली फूलों में तक़्सीम करो
मेरे दिल का हाल न पूछो रहने दो जिस हाल में है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
शेर
घर की तक़्सीम वसिय्यत के मुताबिक़ होगी
फिर भी क्यों मुझ को सगे भाई से डर लगता है
मेराज अहमद मेराज
शेर
घर की तक़्सीम वसिय्यत के मुताबिक़ होगी
फिर भी क्यों मुझ को सगे भाई से डर लगता है
मेराज अहमद मेराज
शेर
सिवाए इस के कोई भी मसरूफ़ियत नहीं है
मैं इन दिनों बस चराग़ तक़्सीम कर रहा हूँ