aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "taras"
बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गएइंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मेंतुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
क़ासिद पयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तूलकहना फ़क़त ये उन से कि आँखें तरस गईं
सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हालदेखने वाले तरस खा कर दुआ देने लगे
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने कोकैसे साहिल पर इक मछली ज़िंदा है
वो सूरत देख कर अपनी ये सूरत ही नहीं रहतीतरस आए तो क्या आए उसे मेरी मुसीबत पर
गुमनाम एक लाश कफ़न को तरस गईकाग़ज़ तमाम शहर के अख़बार बन गए
कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैंबहुत दिनों से ख़ुशी को तरस रहा हूँ मैं
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंजिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
बहती रही नदी मिरे घर के क़रीब सेपानी को देखने के लिए मैं तरस गया
ज़िंदगी किस तरह बसर होगीदिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िलकोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
यूँ तरस खा के न पूछो अहवालतीर सीने पे लगा हो जैसे
मैं तिरे वास्ते आईना थाअपनी सूरत को तरस अब क्या है
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरहज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता हैऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहींदोस्तों की मेहरबानी चाहिए
कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसेतमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप कोकाग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
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