aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "zamzam"
रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दमधोए धब्बे जामा-ए-एहराम के
है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाशऔर हर इक बरहमन गंग-ओ-जमन में मस्त है
ये हिजरतें हैं ज़मीन ओ ज़माँ से आगे कीजो जा चुका है उसे लौट कर नहीं आना
सर्दी है कि इस जिस्म से फिर भी नहीं जातीसूरज है कि मुद्दत से मिरे सर पर खड़ा है
आप ने अच्छा किया ततहीर-ए-ख़्वाहिश ही न कीवर्ना ज़मज़म चश्मा-ए-नापाक होता ग़ालिबन
फ़ुर्सत हो तो ये जिस्म भी मिट्टी में दबा दोलो फिर मैं ज़माँ और मकाँ से निकल आया
ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्यातरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी
अब तक तिरे होंटों पे तबस्सुम का गुमाँ हैहम को तो है महबूब यही आध-खिला फूल
तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करेतमाम उम्र तिरा इंतिज़ार कौन करे
ऐ दोस्त इस ज़मान-ओ-मकाँ के अज़ाब मेंदुश्मन है जो किसी को दुआ-ए-हयात दे
सैल-ए-ज़माँ में डूब गए मशहूर-ए-ज़माना लोगवक़्त के मुंसिफ़ ने कब रक्खा क़ाएम उन का नाम
दौलत-ए-ग़म भी ख़स-ओ-ख़ाक-ए-ज़माना में गईतुम गए हो तो मह ओ साल कहाँ ठहरे हैं
ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दियातुम्हारे ब'अद ज़मान ओ मकाँ को छोड़ दिया
ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैंमकाँ नसीब नहीं ला-मकाँ में रहते हैं
मैं एक उम्र से उन को तलाश करता हूँकुछ ऐसे लम्हे थे जो अपनी दस्तरस में रहे
मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगाकिसी ने जो नहीं देखे वो ख़्वाब देखूँगा
फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आयाजो एक मसअला-ए-दर्द था अभी तक है
इसी लिए तो ये दुनिया धुली धुली सी लगेतिरे फ़िराक़ में रोए हैं ज़ार-ज़ार अभी
भुला चुके हैं ज़मीन ओ ज़माँ के सब क़िस्सेसुख़न-तराज़ हैं लेकिन ख़ला में रहते हैं
किसी भी शाख़ पर पत्ता नहीं हैहवा ने सब को नंगा कर दिया है
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