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शेर
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
पा के इक तेरा तबस्सुम मुस्कुराई काएनात
झूम उट्ठा वो भी दिल जीने से जो बेज़ार था