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शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
कोई तो आए ख़िज़ाँ में पत्ते उगाने वाला
गुलों की ख़ुशबू को क़ैद करना कोई तो सीखे
नीलमा नाहीद दुर्रानी
शेर
न कुछ हम हँस के सीखे हैं न कुछ हम रो के सीखे हैं
जो कुछ थोड़ा सा सीखे हैं तुम्हारे हो के सीखे हैं