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मर्सिया
हर मिस्र-ए-पर-जस्ता है फल तेशा नहीं है
याँ मग़्ज़ सुख़न का है रग-ओ-रेशा नहीं है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
उद्धरण
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
क्या हुआ वाइज़ करे है शोर जूँ तब्ल-ए-तही
वो सर-ए-बे-मग़ज़ गोया कांसा-ए-तम्बूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
न होंगे सोज़-ए-मोहब्बत के दिल-जले ठंडे
भरी है आतिश-ए-ग़म मग़्ज़-ए-उस्तुख़्वाँ की तरह