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पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

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    पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

    निगाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़बाँ की तरह

    बिगड़ गई है यहाँ बे-तरह जहाँ की तरह

    कहाँ की वज़्अ कहाँ की अदा कहाँ की तरह

    छुड़ा दे क़ैद से बर्क़ हम असीरों को

    लगा दे आग क़फ़स को भी आशियाँ की तरह

    कभी तो सुल्ह भी हो जाए ज़ोहद मस्ती में

    इलाही शैख़ भी मय-ख़्वार हो मुग़ाँ की तरह

    जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया

    बहार आई मिरे बाग़ में ख़िज़ाँ की तरह

    हया ने रोक लिया जज़्ब-ए-दिल ने खींच लिया

    चले वो तीर की सूरत खिंची कमाँ की तरह

    तलाश-ए-यार में छोड़ी सरज़मीं कोई

    हमारे पाँव में चक्कर है आसमाँ की तरह

    जो समझे ख़िज़्र तो क़ौल-ए-शहीद-ए-उल्फ़त को

    गिरह में बाँध रक्खे उम्र-ए-जावेदाँ की तरह

    सुने जो हज़रत-ए-ज़ाहिद से वस्फ़ जन्नत के

    तो साफ़ फिर गई आँखों में उस मकाँ की तरह

    झुकी ही जाती है कुछ ख़ुद-ब-ख़ुद हया से वो आँख

    गिरी ही पड़ती है बीमार-ए-ना-तवाँ की तरह

    ये सद्द-ए-राह हुआ किस का पास-ए-रुस्वाई

    रुके हुए हैं मिरे अश्क कारवाँ की तरह

    अदा-ए-मतलब-ए-दिल हम से सीख जाए कोई

    उन्हें सुना ही दिया हाल दास्ताँ की तरह

    मज़े हैं उस दहन-ए-ज़ख़्म के लिए क्या क्या

    जो चूसे तीर के पैकान को ज़बाँ की तरह

    समझ के कीजिए बरबाद मेरा मुश्त-ए-ग़ुबार

    ये ले आए कोई चक्कर आसमाँ की तरह

    ये दिल है आप का घर रहिए शौक़ से लेकिन

    शकेब-ओ-राहत-ओ-सब्र-ओ-क़रार-ए-जाँ की तरह

    क़यामत आई शब-ए-वस्ल मेरे घर के पास

    रक़ीब ने उसे आवाज़ दी अज़ाँ की तरह

    शब उस की बज़्म में था शम्अ पर भी रश्क हमें

    कि मुँह में शोले को गुल-गीर ले ज़बाँ की तरह

    मुझे ये हुक्म है ज़िन्हार तुम करना इश्क़

    नसीहतें भी वो करते हैं इम्तिहाँ की तरह

    हम अपने ज़ोफ़ के सदक़े बिठा दिया ऐसा

    हिले दर से तिरे संग-ए-आस्ताँ की तरह

    कुछ उन से कहने को बैठे थे हम कि ख़ल्वत में

    रक़ीब ही गया मर्ग-ए-ना-गहाँ की तरह

    शिकस्ता बाल हूँ वो मुर्ग़-ए-नातवाँ-ओ-ज़ईफ़

    कि मैं तो मैं उड़े मेरे आशियाँ की तरह

    होंगे सोज़-ए-मोहब्बत के दिल-जले ठंडे

    भरी है आतिश-ए-ग़म मग़्ज़-ए-उस्तुख़्वाँ की तरह

    छोड़ सैद-ए-मोहब्बत को ख़ाक पर सय्याद

    उसे भी डाल ले तू दोश पर कमाँ की तरह

    ज़बान-ए-ख़ार हुई तर हमारी वहशत से

    कि छाले फूटे भी चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ की तरह

    ख़ुदा क़ुबूल करे 'दाग़' तुम जो सू-ए-अदम

    चले हो इश्क़-ए-बुताँ ले के अरमुग़ाँ की तरह

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