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ग़ज़ल
वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
शेर
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है
शकील बदायूनी
शेर
दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे
चर्चे यूँही रहेंगे अफ़्सोस हम न होंगे
आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी
नज़्म
तिब्ब-ए-मग़रिब में मज़े मीठे असर ख़्वाब-आवरी
गर्मी-ए-गुफ़्तार आज़ा-ए-मजालिस अल-अमाँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लाल डोरे तिरी आँखों में जो देखे तो खुला
मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ हैं पैमाने दो