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ग़ज़ल
मैं दिल की क़द्र क्यूँ न करूँ हिज्र-ए-यार में
उन की सी शोख़ियाँ हैं इसी बे-क़रार में
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ना-उम्मीदी नाम-ए-तमन्ना अपना मुक़द्दर हिज्र-ए-मुसलसल
दर्द के ख़ारिस्तान में आ के दामन-ए-दिल उलझाए कौन
किश्वर नाहीद
शेर
इश्क़ के हिज्जे भी जो न जानें वो हैं इश्क़ के दावेदार
जैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल में