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ग़ज़ल
लम्स की लौ में पिघलता हुज्रा-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात
तुम भी होते तो अंधेरा देखने की चीज़ थी
लियाक़त अली आसिम
ग़ज़ल
ख़्वाब-सरा-ए-ज़ात में ज़िंदा एक तो सूरत ऐसी है
जैसे कोई देवी बैठी हो हुजरा-ए-राज़-ओ-नियाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
हनूज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार बाक़ी है
दिल-ए-अफ़सुर्दा गोया हुजरा है यूसुफ़ के ज़िंदाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जहान-ए-ख़ैर में इक हुजरा-ए-क़नाअत-ओ-सब्र
ख़ुदा करे कि रहे जिस्म ओ जाँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हुजरा-ए-ज़ात में या महफ़िल-ए-याराँ में रहूँ
फ़िक्र दुनिया की मुझे हो भी तो कम हो आमीन
रहमान फ़ारिस
ग़ज़ल
अब हुजरा-ए-सूफ़ी में वो फ़क़्र नहीं बाक़ी
ख़ून-ए-दिल-ए-शेराँ हो जिस फ़क़्र की दस्तावेज़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
हुजरा-ए-ज़ात में रौशनी लाने वाली दु'आ के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
बिखर चुके हैं बहुत बाग़ ओ दश्त ओ दरिया में
अब अपने हुजरा-ए-जाँ में सिमट के देखते हैं