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ग़ज़ल
कश्मीर सी जागह में ना-शुक्र न रह ज़ाहिद
जन्नत में तू ऐ गीदी मारे है ये क्यूँ लातें
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
तुम्हारी यादें पत्थर बाज़ियाँ करती हैं सीने में
हमारे हाल भी अब हू-ब-हू कश्मीर वाले हैं
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
ज़र्रा ज़र्रा है मिरे कश्मीर का मेहमाँ-नवाज़
राह में पत्थर के टुकड़ों ने दिया पानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
नक़्श है हर ज़ुल्म जिस का वादी-ए-कश्मीर पर
उस ने दहशत-गर्द लिक्खा अम्न की तस्वीर पर
अब्दुस सत्तार दानिश
ग़ज़ल
क्या ही अच्छा था शह-ए-वक़्त कि ऐसा होता
दुख फ़िलिस्तीं का भी होता तुझे कश्मीर के साथ
फ़ैसल नदीम फ़ैसल
ग़ज़ल
तुम्हारे पाँव उफ़ ये पाँव कितने ख़ूबसूरत हैं
इन्हें तुम जिस जगह रख दो वहीं कश्मीर बन जाए
आरज़ू अशरफ़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दिल के गुल-मर्ग में गिरती है तिरी याद की बर्फ़
हम तिरे हिज्र में कश्मीर बने बैठे हैं
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
ऐवानों में अम्न-ओ-उख़ूवत की जो बातें करते हैं
अपना अपना दामन देखें कश्मीर-ओ-पंजाब के साथ
रहबर जौनपूरी
ग़ज़ल
हुआ कश्मीर और पंजाब में अब तक न समझौता
इधर ये काँगड़ी माँगे उधर वो काँगड़ा समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
हमारे खेतों में ख़ुशबू है हरियाली है सावन है
हम अपने गाँव को कश्मीर की वादी समझते हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
ग़ज़ल
कश्मीर जिसे कहते हैं सब ग़ैरत-ए-फ़िरदौस
जब तू ही नहीं है पास तो दोज़ख़ से सिवा है