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ग़ज़ल
ग़ैर की धमकी से हम डर जाएँ ये मुमकिन नहीं
ऐसे बूदे भी नहीं हैं कुछ हमारे हाथ पाँव
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
उस ने जब ख़ुसरव-ए-परवेज़ की धमकी दी है
मैं ने भी इश्क़-ए-बला-ख़ेज़ की धमकी दी है
ख़ालिद मुबश्शिर
ग़ज़ल
ये क्या हर बात पर धमकी है हम तुझ से समझ लेंगे
हमारे हक़ में जो कुछ तुम को करना हो अभी कर लो
नूह नारवी
ग़ज़ल
मुझ को पिंजरे से तो निकाला पर सय्याद ने धमकी दी
बाज़ू झड़ जाएँगे तेरे तू ने उड़ना चाहा तो
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
ये तो धमकी है कि वो ग़ैर के घर जाएँगे
हम-नशीं देखना हिर-फिर के इधर आएँगे