आज महफ़िल में नए सर से सँवर आएँगे
आज महफ़िल में नए सर से सँवर आएँगे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
MORE BYजितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
आज महफ़िल में नए सर से सँवर आएँगे
उन को मा'लूम है कुछ अहल-ए-नज़र आएँगे
रू-ब-रू यार के गर बार-ए-दिगर जाएँगे
कर के हम एक बड़ा मा'रका सर आएँगे
ये तो धमकी है कि वो ग़ैर के घर जाएँगे
हम-नशीं देखना हिर-फिर के इधर आएँगे
सब्र करने को जो कहते हैं नहीं आते हैं
क्या मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर आप ही भर आएँगे
कौन उम्मीद मेरी आप से पूरी होगी
कौन अरमान मेरे आप से बर आएँगे
लाख पर्दों में रहें मुझ से निहाँ रोज़-ब-रोज़
ख़्वाब में वो मुझे हर शब को नज़र आएँगे
दर से फिर उस बुत-ए-पुर-फ़न के हमारे नाले
साफ़ ज़ाहिर है कि मायूस-ए-असर आएँगे
चश्म-ए-बीना से जो देखेंगे मिरा पर्दा-ए-दिल
ऐ मसीहा कई नासूर नज़र आएँगे
कोई कह दो कि बस अब और तवक़्क़ुफ़ न करें
वर्ना हम जी से गुज़रने पे उतर आएँगे
ना-तवानी से हमारी तुझे क्या तेरा सँभाल
हम तिरे सामने फिर सीना-सिपर आएँगे
आज़माएँगे ग़म-ए-हिज्र का इक और ‘इलाज
कर के सहरा में कुछ अय्याम बसर आएँगे
रहबरी ख़ाक रह-ए-'इश्क़ में इन से होगी
दिल अगर हज़रत-ए-'रहबर' कहीं धर आएँगे
- पुस्तक : Payaam-e-Rehber (पृष्ठ 8)
- रचनाकार : Jitendra Mohan Sinha Rehber
- प्रकाशन : Karanti Gupta & Om Parkash Gupt C-1205, Rajaji Puram, Lucknow (1995)
- संस्करण : 1995
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