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ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
वाइ'ज़ न सुनेगा साक़ी की लालच है उसे पैमाने का
मुझ से हों अगर ऐसी बातें मैं नाम न लूँ मयख़ाने का
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
अब्बा-जी के बिज़नेस से हर बेटे ने मुँह फेर लिया
कुर्सी की लालच ने कितने लोहारों को मार दिया
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
तुम्हें मालूम भी है कि वो निय्यत को परखता है
ये किस लालच में करते हो ये सज्दा किस तरह का है
आइशा अय्यूब
ग़ज़ल
ज़ह्न पर दुनिया की लालच फिर से हावी हो गई
दे के मिट्टी मैं अभी लौटा था क़ब्रिस्तान से
दीदार बस्तवी
ग़ज़ल
सजे बाज़ार में बिक जाएँ ये लालच तो है 'वाहिद'
मगर इनआ'म की ख़ातिर सुख़न हल्का नहीं करते